दोस्तों के ब्लाग पढ़ती हूं तो लगता था कि मैं भी एक ब्लाग बनाऊं। वक्त ही नहीं ...एक साल से काम पूरा नहीं हो रहा था, लेकिन आज ये दिन आ ही गया और मैने ब्लाग बना लिया। अब कोशिश करूंगी कि रोज़ कुछ न कुछ लिखूं। मेरा वादा है अपने से... देखती हूं पूरा कर पाती हूं या नहीं॥
शिवानी श्रीवास्तव
मंगलवार, 12 अगस्त 2008
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3 टिप्पणियां:
शिवानी जी, आलोचनाओं से हमें सीख लेना चाहिए न कि नाराजगी। आलोचनाओं से हमें अपनी कमियों के बारे में पता चलता है। हर कोई हमेशा सीखने की प्रक्रिया में होता है, ऐसा कोई नहीं है जो परफेक्ट हो। इसलिए नाराज़ होने या शर्माने की बजाए साकारत्मक रूप से लेकर गलतियों को सुधारने की जरूरत है। वरना गलतियां फिर दोहरायी जा सकती हैं और कल कोई दूसरा भी आलोचना कर सकता है। हां, लेकिन ये भी देखने की जरूरत है कि आलोचना करने वाले की मंशा क्या है। आलोचना कंन्सट्रक्टिव होनी चाहिए न कि डिस्ट्रक्टिव इस बात का भी ख्याल रखना होगा। अब देखना है कि 'मैंने ब्लॉग क्यूं बनाया' पर मेरी टिप्पणी को आपने किस रूप में लिया है।-अजय शेखर प्रकाश, वॉयस ऑफ इंडिया
रोज़ लिखने का सपना तो पूरा नहीं हो पाया आपका लेकिन कोशिश करें कि सप्ताह में एक आध बार अवश्य लिखें। इससे एक तो ब्लॉगजगत पर उपस्थिती बनी रहेगी वहीं मन में नए विचार भी आते रहेंगे। साथ ही दूसरे ब्लॉग्स पर विचरण करें, क्या पता कौन सी काम की बात पढ़ने को मिल जाए। साथ ही नव लेखकों और ब्लॉगर्स को प्रोत्साहित भी करें। बस, ब्लॉग जगत में सफल रहने और अधिक पाठक जोड़ने का इससे बेहतर तरीका भी कोई नहीं है।
शुभकामनाएं।
शिवानी जी
आपके प्रयास के लिए शुभकामनाएँ। भले ही नियमित ना लिखे परन्तु अच्छा लिखें।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
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